महावीर स्वामी का जीवन परिचय, महावीर स्वामी जीवन चरित्र (Mahavir Swami Jivani Parichay, Death, Mahavir Jayanti)
महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। वे 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। वे पार्श्वनाथ के आम भक्त थे। महावीर ने लगभग 30 वर्ष की आयु में सभी सांसारिक संपत्ति को त्याग दिया और एक तपस्वी बनकर आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ दिया। महावीर ने साढ़े बारह वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या की, जिसके बाद उन्हें केवला ज्ञान (सर्वज्ञान) प्राप्त हुआ। उन्होंने 30 वर्षों तक उपदेश दिया। महावीर स्वामी के भक्त हर साल चैत्र के हिंदू कैलेंडर माह के 13 वें दिन महावीर स्वामी जयंती मनाते हैं।
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Mahavir Swami Jivani Parichay (महावीर स्वामी का जीवन परिचय)
Full Name (पूरा नाम) | महावीर स्वामी |
Other Name (अन्य नाम) | वीरा, वीरवरम, वर्धमान, सन्मति, नयापुत्त, कश्यप |
Age (आयु) | 72 वर्ष |
Famous for (प्रसिद्धि) | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर |
महावीर की संक्षिप्त जानकारी:-
महावीर स्वामी का जन्म 540 ई०पू० में वैशाली (बिहार) के निकट कुण्डग्राम में एक शाही जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थ वज्जि संघ के 8 गणराज्यों में एक जान्त्रिक के राजा थे। उनकी माता का नाम त्रिशला था जो कि लिच्छवी नरेश चेटक की बहन होती थीं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। साथ ही बता दें कि उनके बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन था।
Mahavir Swami Wikipedia (गुरु नानक जी की व्यक्तिगत जानकारी)
जन्म दिनांक (DOB) | 540 ई०पू० |
जन्म स्थान (Birth Place) | (कुण्डग्राम) वैशाली, बिहार |
गृहत्याग | 30 वर्ष में |
ज्ञान प्राप्ति (Enlightment) | गृह त्याग से 12 वर्ष बाद |
मृत्यु (Death) | 468 ई०पू० |
समाधि स्थान | राजगृह (पावा) |
गृह नगर (Home Town) | (कुण्डग्राम) वैशाली, बिहार |
धर्म (Religion) | जैन |
राष्ट्रीयता (Nationality) | एकता / भक्ति |
विद्यालय (School) | गांव का विद्यालय |
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महावीर स्वामी(वर्धमान) का प्रारंभिक जीवन (Early life of Mahavir Swami/Vardhman)
जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष महावीर का जन्म हुआ था उस वर्ष उनके राज्य में अतुलनीय, अप्रत्याशित आर्थिक समृद्धि हुई, इसी कारण उनका नाम वर्धमान रख दिया गया।
कल्पसूत्र इस बात का प्रमाण है कि वर्धमान के पिता ने अपने इस पुत्र के जन्म को अत्यन्त धूम-धाम से मनाया था। “इस अवसर पर टैक्स माफ़ कर दिए गए। लोगों की सरकार द्वारा जब्त सम्पत्ति उन्हें लौटा दी गई। सिपाही किसी के घर जाकर उसे पकड़ नहीं सकते थे। कुछ समय के लिए व्यापार को रोक दिया गया। आवश्यक वस्तुएँ सस्ती कर दी गईं। सरकारी कर्ज और जुर्माने माफ़ कर दिए गए और कुण्डपुर के कैदियों को इस अवसर पर छोड़ दिया गया।”
क्योंकि वर्धमान महावीर राज्य परिवार से संबंधित थे अतः उनका प्रारंभिक जीवन बड़े ही राजोचित ढंग से लाड़ प्यार से बीता। उन्हें सब प्रकार की राजोचित विद्याओं की शिक्षा दी गई।
वर्धमान महावीर की युवावस्था:-
बचपन समृद्धि और विलासिता पूर्ण बीतने के बाद वे युवावस्था में प्रवेश किए। युवावस्था में उनका विवाह एक कुण्डिय गोत्र की कन्या यशोदा नाम की एक राजकुमारी के साथ कर दिया गया जिससे कालांतर में उनके एक पुत्री उत्पन्न हुई जिसका नाम अणोज्जा था।
अनोज्जा का विवाह जमालि के साथ किया गया। जो बाद में महावीर का शिष्य भी बन गया। बता दें कि बाद में जमालि ने ही जैन धर्म मे भेद उत्पन्न किया।
महावीर द्वारा गृहत्याग:–
क्योंकि वे चिंतनशील स्वभाव के थे तथा पिता की मृत्यु के बाद उनकी निवृत्तिमार्गी प्रवृत्ति और भी दृढवती हो गयी थी। और अब उन्हें राजवैभव, भोग विलास आदि रास नहीं आ रहे थे। पिता की मृत्यु के पश्चात जब उनकी अवस्था 30 वर्ष की थी तो वह अपने बड़े भाई नंदीवर्धन, जो कि उस समय राजा बन चुके थे, उनसे आज्ञा लेकर गृहत्याग कर दिया। तथा ज्ञान प्राप्ति हेतु निकल पड़े और सन्यासी हो गए।
गृहत्याग के पश्चात महावीर स्वामी:-
विदित है महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया। वे सत्य की खोज (अथवा ज्ञान के लिए) 12 वर्ष भ्रमण करते रहे और तपश्या करते रहे। गृह त्याग के पश्चात उन्होंने प्रारंभ में वस्त्र धारण किए थे तथा 13 महीने बाद वे पूर्णतया वस्त्र उतारकर नंगे रहने लगे थे। इस बीच उन्होंने कठोर तपस्या एवं साधना का जीवन व्यतीत किया।
जैन धर्म की स्थापना संत महावीर ने की थी, जो इसके शिक्षक भी थे। वे एक जैन अधिवक्ता थे और जैन धर्म के चौबीसवें (24) तीर्थंकर थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन अहिंसक संघर्ष समाधान को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया। यह वह दौर था जिसमें जातिवाद को बढ़ावा दिया गया था। इस अवधि के दौरान, भगवान महावीर का जन्म हुआ था। पूरे भारत में, जैन समुदाय भगवान महावीर के जन्म को उनके जन्मदिन पर मनाता है, जिसे महावीर जयंती के रूप में जाना जाता है
★जैन ग्रंथ आचारांगसूत्र उनके कठोर तपस्या एवं काया क्लेश का बड़ा ही रोचक विवरण प्रस्तुत करता है जो इस प्रकार है―
“प्रथम 13 महीनों में उन्होंने कभी भी अपना वस्त्र नहीं बदला। सभी प्रकार के जीव-जन्तु उनके शरीर पर रेंगते थे। तत्पश्चात् उन्होंने वस्त्र का पूर्ण त्याग कर दिया तथा नंगे घूमने लगे। शारीरिक कष्टों की उपेक्षा कर वे अपनी साधना में रत रहे। लोगों ने उन पर नाना प्रकार के अत्याचार किये, उन्हें पीटा। किन्तु उन्होंने न तो कभी धैर्य खोया और न ही अपने उत्पीड़कों के प्रति मन में द्वेष अथवा प्रतिशोध रखा। वे मौन एवं शान्त रहे ।……”
इसी प्रकार भ्रमण करते हुए वे राजगृह पहुँचे जहाँ के लोगों ने उनका सम्मान किया। वे नालन्दा गये जहाँ उनकी भेंट मक्खलिपुत्त गोशाल नामक संन्यासी से हुई। वह उनका शिष्य बन गया किन्तु छ वर्षों बाद उनका साथ छोड़कर उसने ‘आजीवक’ नामक नये सम्प्रदाय की स्थापना की।
ज्ञान प्राप्ति:-
12 वर्षों की कठोर तपस्या तथा साधना के पश्चात् जृम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल के वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् वे ‘केवलिन्’, ‘जिन’ (विजेता), ‘अर्हत्’ (योग्य) तथा निर्ग्रन्थ (बन्धन-रहित) कहे गये। अपनी साधना में अटल रहने तथा अतुल पराक्रम दिखाने के कारण उन्हें ‘महावीर’ नाम से सम्बोधित किया गया।
ज्ञान प्राप्ति के बाद Mahavir Swami:-
कैवल्य-प्राप्ति के पश्चात् महावीर ने अपने सिद्धान्तों का प्रचार प्रारम्भ किया। वे आठ महीने तक भ्रमण करते तथा वर्षा ऋतु के शेष चार महीनों में पूर्वी भारत के विभिन्न नगरों में विश्राम करते। जैन ग्रन्थों में ऐसे नगर चम्पा, वैशाली, मिथिला, राजगृह, श्रावस्ती आदि गिनाये गये हैं। वे कई बार बिम्बिसार और अजातशत्रु से मिले तथा सम्मान प्राप्त किया। वैशाली का लिच्छवि सरदार चेटक उनका मामा था तथा जैन धर्म के प्रचार में मुख्य योगदान उसी का रहा।
अब उनकी ख्याति काफी बढ़ गयी तथा दूर-दूर के लोग और राजागण उनके उपदेशों को सुनने के लिये आने लगे।
Mahavir Swami का अंत समय :-
30 वर्षों तक उन्होंने अपने मत का, तथा जैन धर्म का व्यापक प्रचार किया। 468 ईसा पूर्व के लगभग 72 वर्ष की आयु में राजगृह के समीप स्थित पावा नामक स्थान में उन्होंने शरीर त्याग दिया।
महावीर के अन्य नाम और उनके कारण:-
- वर्धमान― उनके बचपन का नाम।
- केवलिन― ऋजुपालिका नदी के तट पर महावीर को कैवल्य (ज्ञान) प्राप्त हुआ तभी से उन्हें केवलिन की उपाधि मिली
- जिन― उन्होंने अपनी इंद्रियों को जीत लिया था इसलिए वे जिन कहलाए।
- महावीर― उन्होंने ज्ञान प्राप्ति के पूर्व 12 वर्ष तक बहुत ही पराक्रम दिखाएं तथा साहस से काम लिए इसलिए उन्हें महावीर कहा गया।
- निगण्ठ नाटपुत्त― उनका यह नाम बौद्ध साहित्य में वर्णित है।
- निर्ग्रन्थ― गृह त्याग और ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने समस्त सांसारिक बंधनों (ग्रंथियों) को तोड़ दिया था अथवा उनसे मुक्त हो गए थे इसलिए वे निर्ग्रन्थ कहलाए।
- अर्हत― ज्ञान प्राप्ति के बाद वे लोगों के समस्याओं अथवा उनके दुख दूर करने के योग्य हो गए थे इसलिए उन्हें अर्हत कहा गया।
- ज्ञातृपुत्र― वे ज्ञातृक राजा के पुत्र थे इसलिए उन्हें क्या ज्ञातृपुत्र कहा गया।
Mahavir Swami Family (महावीर स्वामी जी का परिवार)
Father (पिता) | सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रियों का सरदार) |
Mother (माता) | त्रिशला (लिच्छवी नरेश चेटक की बहन) |
Brother (भाई) | नंदीवर्धन सुदर्शन |
Sister (बहन) | नहीं |
Mahavir Swami Wife (महावीर स्वामी जी की पत्नी)
Marital Status (वैवाहिक स्थिति) | विवाहित |
Mahavir Swami Wife (पत्नी) | यशोदा |
Children (बच्चे) | प्रियदर्शन (अनोज्जा) |
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महावीर जी कौन थे?
उत्तर – महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।
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स्वामी की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर – स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था।
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महावीर स्वामी ने कितने वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त किया था?
उत्तर – महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में सांसारिक जीवन त्याग दिया था और तपस्या में लग गए थे, लगभग 12 वर्ष के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
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महावीर स्वामी की जन्मतिथि क्या है?
उत्तर – 540 ई०पू०।
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